Wednesday, July 30, 2014

Shyness lecture for parents


शर्मीलापन (Shyness) क्या होता है?
शर्मीलेपन का सम्बन्ध अधिकतर सामाजिक विकास से होता है. यदि कोई बच्चा या बड़ा व्यक्ति अपनी बात किसी को कह नहीं पा रहा और शर्म महसूस हो रही है तो कहा जाता है कि वह बच्चा या व्यक्ति शर्मीला है. शर्मीला होना अपने आपमें बुरी बात नहीं है लेकिन यह बच्चे के लिए सामाजिक विकास में बहुत बड़ी रुकावट होता है इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास की ओर गर्भावस्था से ही बहुत ध्यान दे क्योंकि इस समय से ही बच्चे का विकास होना शुरू होता है. यदि कोई बड़ा व्यक्ति इस स्थिति से गुज़र रहा है तो वह भी बड़ी आसानी से अपने मन से इस भाव को मिटा सकता है. लेकिन उससे पहले इसके कारण जानने की कोशिश करते हैं.
शर्म (Shyness)के कारण –
  • Low birth weight – वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च द्वारा यह बताया है कि जो बच्चे समय से पहले जन्म लेते हैं तो उनका भार कम होता है जिसकी वजह से वे बड़े होकर शर्मीले स्वभाव के बनते हैं और उनका मानसिक, सामजिक विकास देर से होता है. बच्चे के स्वास्थ्य का पहला कर्तव्य माता का होता है. यदि माता गर्भावस्था के समय अच्छा भोजन ले तो बच्चे का स्वास्थ्य अच्छा ही होगा.
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  • Genetic (Heridity) – यह बात तो हम सभी जानते हैं कि बच्चों पर अपने माता-पिता का बहुत असर होता है. बच्चों में अधिकतर गुण अपने माता-पिता से ही आते हैं. कई बार यदि माता या पिता में से कोई भी शर्मीले स्वभाव का हो, और बच्चा अपने माता-पिता के गुणों पर गया हो तो यह संभव है कि बच्चा बड़ा होकर शर्मीला ही बनेगा.
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  • माता-पिता द्वारा शर्मीला होना सीखना – जो माता-पिता स्वभाव से शर्मीले होते हैं और अधिक पढ़े-लिखे नहीं होते, वे अपने बच्चों को भी वही शिक्षा देने की कोशिश करते हैं कि “बेटा! अगर पड़ौस वाली आंटी आपको बुलाए तो आप उनके घर मत जाना. अगर वो आंटी आपको कुछ दे तो आप उनसे कुछ मत लेना, सीधा मना कर देना.” अपनों के प्रति बच्चे के मन में ऐसी भावना डालना गलत है. इससे बच्चे के मन में दूसरों के प्रति परायेपन का भाव आता है.
  • घर का नकारात्मक माहौल – यदि घर का माहौल नकारात्मक है, माता-पिता आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं या पिता हमेशा बच्चों को डांटते ही रहते हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि बच्चे इस माहौल में डरे-डरे से रहते हैं. न तो वे अपनी बात किसी से कह पाते हैं और न कभी खुश रह पाते हैं. यदि माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे आगे जा कर शर्मीले स्वभाव के न बनें, तो उन्हें अपने घर के माहौल को सकारात्मक और मिलनसार बनाना होगा.
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  • माता-पिता का प्यार न पाना – आजकल बहुत से माता-पिता ऐसे हैं जो नौकरी करते हैं. उन्हें अपने बच्चों से न तो बात करने की फुर्सत मिलती है, न ही वे उन्हें उतना प्यार दे पाते हैं जितना उनके बच्चे उनसे उम्मीद करते हैं. कभी-कभी माता-पिता दो बच्चों में से सिर्फ एक को ही प्यारे करते हैं. यदि माता-पिता यह कहते हैं कि बच्चों की उनके प्रति जिम्मेदारियां होती हैं तो उससे भी पहले उनकी अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदारियां होती हैं. यदि माता-पिता अपने बच्चों के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां ठीक तरह से नहीं निभा पा रहे हैं तो बड़े होकर बच्चे भी अपनी जिम्मेदारियों से चूक जाते हैं. माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को इतना प्यार दें जिससे उनका बच्चा इतना मजबूत बन जाए कि दुनिया की मुसीबतों का सामना अकेले कर सके और बड़ा होकर माता-पिता की सेवा कर सके, और अपने माता-पिता को दुनिया के आदर्श माता-पिता मानें.
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  • हर बात पर रोक-टोक – कई बार ऐसा देखा गया है कि कुछ माता-पिता को बार-बार रोक-टोक करने की आदत होती है कि “बच्चे, ऐसा नहीं करो…..वैसा नहीं करो….. ये नहीं करो….. वो नहीं करो!” इससे बच्चे में हीन भावना पैदा होती है कि वो हमेशा गलत काम ही करता है. अकेले बच्चे हमेशा गुमसुम होकर बैठे रहते हैं और अपनी कोई भी बात अपने माता-पिता से नहीं कह पाते. जब बचपन में माता-पिता ही उनके साथ ऐसा व्यवहार करेंगे तो बच्चे समाज में भी पूरी तरह से विकास नहीं कर पाएंगे. बच्चे अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर सकते तो इससे उनके विकास में बाधा आती है. एक वैज्ञानिक भी तभी कोई नई खोज करता है जब वह अपनी इच्छा से कुछ न कुछ experiments करता रहे. इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे को एक सीमा तक आज़ादी अवश्य दें ताकि वो भी खुल कर जी सके.
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  • Harsh Critisizm – बच्चों के जीवन का आधार घर से ही शुरू होता है. बचपन से ही उनके जीवन की नींव पक्की होनी शुरू होती है. बचपन से ही वे अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों से सीखना शुरू करते हैं. बच्चे इतने मासूम होते हैं कि दूसरों को देखकर अनजाने में गलतियाँ भी सीख जाते हैं. यदि माता-पिता उन्हें हर बात पर उनकी ही गलती निकालें तो यह गलत होगा. इसका बच्चों पर बहुत गहरा असर पड़ता है. माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को प्यार देकर उनकी गलती समझाएं, न कि बात-बात पर उनकी गलतियाँ निकालें और उन्हें डांटें. प्यार तो वो है जिसे पाकर जानवर भी आपकी बात मानने लगते हैं.
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  • माता-पिता द्वारा किसी गलती की सख्त सज़ा देना – बचपन में बच्चे मासूम और अनजान होते हैं. वे बहुत सारी गलतियाँ करते हैं. उनकी गलती पर उन्हें कड़ी सज़ा देना किसी भी बात का हल नहीं है. जैसे कई माता-पिता बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ देर के लिए कमरे में बंद कर देते हैं.ऐसी कड़ी सज़ा देना बहुत गलत है. बचपन होता ही इसलिए है कि बच्चे को सिखाया जाए. बच्चे के पहले गुरु उसके माता-पिता ही तो होते हैं. इसलिए माता-पिता का फ़र्ज़ है कि वे बच्चे को प्यार से सिखाएं. बच्चे प्यार को कभी नहीं भूलते. जो उन्हें प्यार देता है वे उनके हो जाते हैं.
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  • बचपन में कम दोस्त – जीवन जीने के लिए दोस्तों की सबको ज़रूरत पड़ती है. कहते हैं कि जब भगवान किसी को रिश्तेदार बनाना भूल जाता है तो उसे दोस्त बनाकर भेज देता है. दोस्ती का रिश्ता सबसे ऊपर होता है जो बिना किसी interest के निभाया जाता है. अब माता-पिता तो बच्चे के साथ हर जगह नहीं जा सकते, तो उसकी कमी दोस्त पूरी करते हैं. यदि बचपन में किसी कारण किसी बच्चे के दोस्त नहीं होते या कम होते हैं तो वो स्कूल में अपनी बात किसी से नहीं कह पाता और खुद को अकेला महसूस करता है. इसी कारण वह शर्मीले स्वभाव का बन जाता है. माता-पिता को चाहिए कि बचपन में वे अपने बच्चे के दोस्त बनाने में उसकी मदद करें.
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  • Emotionally more sensitive – कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो अक्सर अपनी माता को परेशान देखकर खुद रोने लगते हैं क्योंकि वे मन से बहुत भावुक होते हैं. यदि बच्चा बचपन से बहुत भावुक स्वभाव का है तो यह संभव है कि वो बड़ा होकर शर्मीले स्वभाव का बनेगा. यह गुण अधिकतर लड़कियों में पाया जाता है. जो बच्चे भावुक होते हैं, वे मन के सच्चे होते हैं. मन के सच्चे बच्चे अधिकतर अंतर्मुखी होते हैं अर्थात वे अपना अधिकतर समय अपने साथ ही रहना पसंद करते हैं. दूसरों से उनको कोई मतलब नहीं रहता. जब बच्चा किसी के साथ बातचीत कम करेगा तो वह अपनी बात दूसरों के सामने स्पष्ट रूप से नहीं रख पाएगा. ऐसे में माता-पिता ही बच्चे को अपना प्यार देकर उसकी मदद कर सकते हैं.
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  • माता-पिता की डांट का डर – कभी-कभी माता या पिता का स्वभाव डांटने वाला होता है. बच्चे मन के बहुत कोमल होते हैं. बचपन में अधिक मारना, अधिक डांटना या किसी को मारते हुए देखने से भी बच्चों के मन में डर बैठ जाता है. यह डर बच्चों को स्वभाव से शर्मीला बना देता है.
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  • भावात्मक शोषण – यदि कोई अन्य बच्चा आपके बच्चे का बार-बार मज़ाक उड़ाता है तो आपका बच्चा धीरे-धीरे उससे अपनी बात कहना छोड़ देगा. ऐसा तो किसी के साथ भी हो सकता है. यदि आपका कोई बार-बार मज़ाक उडाए तो आप भी उस व्यक्ति से बातचीत करना बंद कर देंगे. किन्तु बच्चे के साथ ऐसा बार-बार होने पर बच्चे के कोमल मन पर बहुत गहरा असर होता है और वो न बोलने को अपना स्वभाव बनाना शुरू कर देता है. ऐसी घटनाएँ बच्चे को भविष्य में शर्मीला बना सकती हैं.
  • अवसाद – जब कोई बच्चा या बड़ा व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है तो वह अधिकतर गुमसुम रहता है. वह न तो किसी से बात करता है और न ही किसी से मिलना पसंद करता है. अवसाद व्यक्ति को समाज से दूर कर देता है.
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  • समाज से दूर रहना – जिन बच्चों को माता-पिता घर से बाहर नहीं निकलने देते, बाहर किसी से मिलने-जुलने नहीं देते, वे समझते हैं कि बच्चे बाहर जाकर बुरी आदतें न सीख लें; ऐसे बच्चे समाज से दूर हो जाते हैं. बड़े होकर जब उन्हें समाज का सामना करना पड़ता है तो वे असहजता महसूस करते हैं. माता-पिता यह न भूलें कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. यदि बचपन से ही उसे समाज में रहना नहीं सिखाया गया तो बड़ा होकर वह समाज के साथ नहीं रह पाएगा. माता-पिता का अपने बच्चे के प्रति पहला कर्तव्य यह है कि वे हर तरीके से independently उसे इस समाज में रहना सिखाएं और अपने पैरों पर खड़े होना सिखाएं; तभी माता-पिता का फ़र्ज़ पूरा होगा.
  • आत्म-विश्वास में कमी – माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चे में आत्म-विश्वास पैदा करें कि वो जो भी काम करे बिना किसी डर के कर सके. पढ़ाई में, किसी competition में या किसी भी क्षेत्र में उसका हौंसला बनाए रखें. बच्चे को निरंतर आगे बढ़ते रहने की, मेहनत करने की प्रेरणा देते रहें. अगर बच्चे का अपने ऊपर से विश्वास उठ गया तो बच्चा कोई भी काम ठीक से नहीं कर पाएगा और अपनी बात को किसी के आगे नहीं रख पाएगा. किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए आत्म-विश्वास प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत ज़रुरी है.
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  • अध्यापक द्वारा कड़ी सज़ा देना – कभी-कभी ऐसा होता है कि स्कूल में अध्यापक बच्चे की गलती पर उसे कोई ऐसी कड़ी सज़ा दे देते हैं, जिससे बच्चे के मन में अध्यापक के प्रति डर बैठ जाता है. वो डर बच्चे को दिन-रात परेशान करता रहता है और बच्चा अपनी हर बात सबसे छिपाना शुरू कर देता है. एक बार एक बच्चे ने homework नहीं किया. उसने कोशिश की पर उससे नहीं हुआ. कक्षा में अध्यापक ने उसकी इतनी पिटाई की जिससे वह अपने अध्यापक से डरने लग गया और स्कूल जाने के नाम पर रोज़ सुबह तेज़ बुखार से पीड़ित होने लगा. अगर homework न करने की बात वह अपनी माता को बताता तो भी शायद उसे डांट पड़ती इसलिए वह अपनी हर बात सबसे छिपाने लगा और उसका स्वभाव शर्मीला बन गया. इस उदाहरण से हम यह समझ सकते हैं कि बच्चे को कड़ी सज़ा देना बहुत गलत है.
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  • बच्चे के साथ बुरा व्यवहार करना – यदि बचपन से ही किसी बच्चे को डरा धमका कर रखा जाए तो उस बच्चे का भविष्य अन्धकार में ही होगा. किसी कारणवश जो बच्चे अपने परिवार से दूर हो जाते हैं या जिन्हें कोई ऐसा परिवार पालता है जो उसे डरा कर रखता है तो ऐसे बच्चों का भविष्य उस चार-दीवारी में घुट कर मर जाता है और उसका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता.
  • बच्चे पर अपनी मर्ज़ी थोपना – यदि किसी बच्चे को बचपन से ही घर के ऐसे माहौल में रखा जाए जहाँ पर सब उस पर अपनी मर्ज़ी थोपते रहें, उससे वही काम करने को देते हैं जैसा वे चाहते हैं तो ऐसे माहौल में बच्चे का सामजिक विकास खत्म हो जाता है. माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे को सीमित मात्रा में आज़ाद रहने की अनुमति अवश्य दें ताकि बच्चे की मानसिक और सामाजिक उन्नति हो सके.
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  • स्कूल में अन्य बच्चों द्वारा धमकाना या परेशान – कई बार स्कूल में ऐसा होता है कि कुछ बड़े बच्चे मिलकर किसी नए या छोटे मासूम बच्चों को बहुत परेशान करते हैं या सबके सामने उसका ऐसा मज़ाक उड़ाते हैं जिससे बच्चों के मन में उन बड़े बच्चों के प्रति डर बैठ जाता है. यहीं से उन डरे हुए बच्चों का सामाजिक विकास धीरे-धीरे कम होना शुरू हो जाता है. उदाहरण के लिए एक छोटे बच्चे ने बड़े स्कूल में दाखिला लिया. स्कूल के पहले दिन वहाँ कुछ बच्चों ने मिलकर उसकी निक्कर उतरवा कर उसका बहुत मज़ाक उड़ाया. उस डर से वह बच्चा बड़ा होकर शर्मीले स्वभाव का बन गया.
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  • बच्चे की शारीरिक अपंगता – कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो जन्म से ही किसी शारीरिक अपंगता का शिकार हो जाते हैं जिससे उनका सामाजिक जीवन लगभग खत्म सा हो जाता है. वे न तो इस लायक होते हैं कि समाज से संपर्क स्थापित कर सकें और न ही वे ऐसा कर पाने में सक्षम होते हैं. एक छोटी सी जगह में अपने कुछ साथियों या परिवार के साथ ही उनका पूरा जीवन खत्म हो जाता है.
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  • ऐसे माता-पिता जो अपने बच्चों की रक्षा नहीं कर सकते – जो माता-पिता शारीरिक रूप से कमज़ोर होते हैं और अपने आस-पास के लोगों के अत्याचारों से अपने बच्चे की रक्षा नहीं कर सकते, ऐसे बच्चे भी बड़े होकर अपनी बात को अपने माता-पिता और समाज से कहने में शर्म महसूस करते हैं. ऐसी स्थिति अधिकतर गाँवों में आती है जहाँ एक व्यक्ति गाँवों के लोगों पर ज़ुल्म करता है. यह उन अनपढ़ माता-पिता के साथ भी होता है जो अपने बच्चे की देखभाल सही तरीके से नहीं कर सकते.
  • Verbal skills की कमी के कारण – यदि किसी बच्चे में बोलने की क्षमता पूरी तरह से develop नहीं हो पाई है तो बच्चा अपनी बात किसी एक व्यक्ति या public के सामने कहने में हिचकिचाता है. ऐसे में वो अपनी बात किसी से कह नहीं पाता या कहने में बहुत शर्म महसूस करता है. माता-पिता को बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास की ओर बचपन से ही ज़रूर ध्यान देना चाहिए ताकि उनका बच्चा भी इस संसार में सबकी तरह सिर उठाकर जी सके और अपने माता-पिता पर गर्व महसूस कर सके.
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  • बच्चे में Asperger syndrome – यह एक तरह की बीमारी है जो कुछ बच्चों में पाई जाती है. इसमें बच्चे की basic social skills बहुत समय बाद develop होती हैं, जैसे – किसी से खुल कर बात न कर पाना, किसी से बात करते समय आँखों में आँखें मिलाकर न बोल पाना, social get-together में जाना अच्छा न लगना, जल्दी से किसी को अपना दोस्त न मानना, किसी से बात करते समय बहुत nervous महसूस करना जैसे हाथों को बार-बार हिलाना या मरोडना, दूसरों के साथ coordination बनाए न रख पाना, limited range of interest, facial eexpressions, gestures and body language को समझने और express करने में कठिनाई महसूस करना.
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ये सभी कारण इस प्रकार से हैं कि जिन पर अगर माता-पिता बचपन से ध्यान दें तो बच्चे के सामाजिक विकास में कभी बाधा न आने पाए. अत: सभी माता-पिता से यह अनुरोध है कि वे अपने बच्चे के प्रति सभी कर्तव्यों की पालना करें ताकि उनका बच्चा भी बड़ा होकर अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभा पाए.
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Monday, July 14, 2014

Basics of Meditation (ध्यान क्या और कैसे करें?)

Introduction

दोस्तों! अब हम Meditation ( ध्यान) के बारे में बात करेंगे l आजकल हम सभी लोग इतने tense हैं, इतनी ज़्यादा tensions हमारी life में हैं कि सचमुच अपने आपके लिए भी समय दे पाना बहुत difficult हो गया है, बहुत मुश्किल हो गया है l और इसी कारण से बहुत सारी mental और physical बीमारियों ने हमें आकर घेर लिया है l अगर हम इन चीज़ों से ज़रा भी मुक्त होना चाहते हैं तो उसके लिए “ध्यान” एक बेहद ज़रुरी चीज़ है l आप देखिये! चिंता या विचार या tension जिसे हम कहते हैं, उसमें हमारा मन विचारों से पूरी तरह भरा हुआ होता है l एक ऐसी state में हम पहुँच जाते हैं, जब हमारे हमारे विचारों पर कोई control नहीं रह जाता, नियंत्रण नहीं रह जाता l अगर ध्यान को परिभाषित करने की कोशिश करें तो ध्यान का सीधा और स्पष्ट अर्थ है – विचार शून्य अवस्था में पहुँच जाना  - यानी thoughtless state में पहुँच जाना l पर Is it possible? क्या यह संभव है? क्योंकि हम लोग हमेशा ही इन विचारों से इतना भरे हुए रहते हैं, क्या आप अपने जीवन में सोच सकते हैं कि कभी ऐसा भी time होता है, जिस time में आपके मन में कोई विचार नहीं चल रहे होते l शायद नहीं..... l केवल जिस वक्त आप सुबह सुबह सो कर उठते हैं, एकदम से उसी समय को थोड़ी देर तक observe करें, याद करें l उस समय में एक ऐसी अवस्था होती है जब आपके मन में कोई विचार नहीं होते l इसलिए उस अवस्था के अंदर आप अपने आपको कुछ भी अपनी आदतें बदलना चाहें तो आप उस समय में अपने आपको कुछ positive suggestions भी दे सकते हैं, अपने आप में परिवर्तन ला सकते हैं l ध्यान अपने आपके परिवर्तन की technique है, विधि है l अपने आपमें परिवर्तन कैसे लाया जाए? तो उसके लिए जैसा कहा कि

ध्यान thoughtless state में पहुँचने की विधि का नाम है l  Thoughtless कैसे हुआ जाए? विचारशून्य कैसे हुआ जाए? उसके लिए बड़ी simple सी technique है – simple इसलिए क्योकि steps उसमें कुछ नहीं है, हाँ उसको achieve करना, वहाँ तक पहुँच पाना अपने आपमें थोड़ा मुश्किल ज़रूर होता है l तो उसके लिए आप simple गहरी साँस लेकर बैठेंगे l गहरी सांस लीजिए लेकिन साँस को आप छाती में न भरें, अपने पेट तक भरने की कोशिश करें l साँस लीजिए लेकिन आपका पेट फूले, न कि chest.

               

               

आप इस तरह से साँस लेंगे तो कोई change नहीं आएगा l आपको पता हो कि जो हमारे diaphragm या फेफड़ें हैं, वो यहाँ हैं l तो इन फेफड़ों के द्वारा जब हवा अंदर जाती है तो हमारे पेट तक पहुँचती है l पेट से जब हम साँस लेते हैं तो उससे हमारा मन बहुत हद तक शांत होना शुरू कर देता है l क्यों? क्योंकि एक तो इससे फायदा ये हो रहा है कि हमारी साँस की लम्बाई बढ़ गई है l हम नाक से सांस ले रहे है और हमें उसे पेट तक पहुँचाना है, नाभि तक पहुँचाना है l हम अगर ये मान के चलें कि अभी जो मैंने साँस ली, यह नाभि तक पहुँच रही है l तो इसका मतलब मेरे साँस को ज़्यादा distance cover करनी पड़ रही है l इसकी वजह से मेरी साँस हल्की हो जाएगी यानी लंबी हो जाएगी और गहरी हो जाएगी l इस प्रकार से आप केवल थोड़े समय तक बैठकर meditation की practice करेंगे l इसको simple प्राणायाम कहते हैं l अभी यह केवल प्राणायाम है l अब साथ ही साथ अगर हम यह भाव करना शुरू कर दें कि ये मेरे प्राण चल रहे हैं, मेरी साँस चल रही है, but at the same time am I doing it? क्या मैं इसे कर रहा हूँ? The answer will come in “no”. क्या साँस मैं ले रहा हूँ? शायद नहीं l साँस ली जा रही है, यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है l I am just an observer. मैं केवल साक्षी हूँ, केवल देखने वाला हूँ l


It just that. As you get far away from this breathing, this doing........ you start coming into the witness state. और जैसे ही witness हम होते हैं, हमारे विचार कम होने शुरू हो जाते हैं l यानी मैं सिर्फ देख रहा हूँ, मैं कुछ कर नहीं रहा हूँ, I am just doing it. इस प्रकार से हम साँसों को धीरे flow में ले आते हैं और उससे हमारा मन शांत होना शुरू हो जाता है l धीरे धीरे करके हम अपने आप में स्थित होना शुरू कर देते हैं l इसीलिए हमारा हिंदी में शब्द बना है “स्वास्थ्य” l “स्वास्थ्य” का अर्थ है – स्व में स्थित हो जाना l यानी अपने आप में स्थित हो जाना l अभी तो हम अधिकतर औरों में स्थित हैं l अगर हम कोई घर के काम करते हैं, तो उन कामों में हम स्थित हो जाते हैं l अभी हम अपने दोस्तों में स्थित हो जाते हैं l अभी हम TV में, advertisements में और सांसारिक चीज़ों के अंदर हम स्थित हो जाते हैं, अपनी job में स्थित हो जाते हैं l तो अपने आप तक पहुँचने का हमें कभी समय ही नहीं होता और इसीलिए इसी वजह से जो mental tension, fatique, depression, insomnia, इस तरह की problems हमारी आनी शुरू हो गई हैं l इससे पहले कि ये चीज़ें हमें पूरी तरह से घेर लें, हम अपने आप को safe करने के लिए, अपने आपको बचाने के लिए थोड़ा समय अपने आपको देना शुरू करना चाहिए l और यही स्वास्थ्य को achieve करने के लिए, अपने आप में स्थित के लिए meditaion यानी ध्यान एक technique है - अपने आपमें टिक जाना l जैसी पहली technique बताई, this is technique no. 1. बिलकुल simple, हम जब साँस को हम लें, breathing जब हम करें तो breathing हमारी deep हो, हमारी नाभि तक पहुंचे l यानी पूरा 5-6 sec. लगाकर साँस को हमने अंदर लिया और 5-6 sec. लगाकर हमने साँस को बाहर छोड़ा l


यह simple breathing technique है l Breathing technique में हमने लंबा साँस लिया और उससे हमारा मन शांत होना शुरू हुआ l अब जैसे ही मन शांत होता है, इस समय में अपने आपको positive suggestions देने हैं l जैसे ही मन शांत हो रहा है, उस समय में अपना ध्यान अपने से थोड़ा सा ऊपर ले कर जाएँ l This is called the “Third eye meditation”. आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाना l हमारे दोनों eyebrows के बीच में, हमारे माथे के बीच में जो point है, This is called the “Third eye”, जो भगवान शिव की हम तीसरी आँख देखते हैं l


ये तीसरी आँख हम सभी के अंदर होती है l English में इसे “Pineal Gland” भी कहते हैं l तो यह जो स्थान है, somehow ये हमारे अंतर मन को control करने का, हमारे अंतर में प्रवेश करने का सबसे main gateway है l यहाँ से हम अपने अंतर मन को control कर सकते हैं l


हमारी मन की दो परतें हैं – एक बाहरी परत है, जिसे हम conscious mind कहते हैं l और एक अंदरूनी परत है, जिसे हम subconscious mind कहते हैं l हमारा व्यवहार, हमारे मन की चिंताएँ हैं, हमारे सपने, हमारी आदतें, वो subconscious mind के द्वारा control होती हैं l

अगर हम इस subconscious mind को थोड़ा भी control करना सीख लें, हमारे जीवन में बहुत कुछ बदला जा सकता है l यह सारी techniques हैं अपने आपको बदलने की, अपने आपमें स्थित होने की l इसके लिए - हमने मन को थोड़ा शांत किया l - लगभग 15 min. तक आप breath in, breath out वाली technique करें l आप साँस को गहरा लें, नाभि तक ले कर जाएँ और वहाँ से साँस को बाहर छोड़ें l जितना समय में हम साँस को अंदर लेते हैं, लगभग उतना ही समय हम बाहर लें l इससे हमारा मन शांत होगा l 


 - अब हम अपने आज्ञा चक्र पर ध्यान टिका कर, यानी थोड़ा सा आँखों को ऊपर की तरफ ध्यान को रखते हैं l लेकिन  इसके लिए आँख बंद करनी पड़ेगी l आँखें बंद करके इस स्थान पर हम ध्यान टिकाएंगे, दोनों eyebrows के बीच में और थोड़ा सा ऊपर l यहाँ पर हम ध्यान को टिकाएंगे और यहाँ पर हम एक observer हो जाते हैं, केवल विचारों को देखने के लिए दर्शक बन जाते हैं l केवल एक दर्शक, देखने वाले.......... l मन के अंदर विचार चल रहे हैं, 
विचारों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है l That is a the basic technique.

 

अपने आप में स्थित होने का मतलब है - मैं अपने आपमें स्थित हूँ, और मेरा मन और मैं दो अलग-अलग बातें हैं l क्यों? These thoughts whatever are going on inside, I am not the thoughts. I am the one who is observing the thoughts. That’s it. This is the technique. This is the whole crux of the story कि मैं विचार नहीं हूँ, मैं विचारों को देखने वाला हूँ, I am the observer. भगवान शिव ने जो technique बताई थी, आज भी बहुत सारे लोग अलग अलग तरीकों से इस technique को बता रहे हैं l हम बिलकुल basic सी बात कर रहे हैं, जो हमारी life में immediate change ला सकती है,

Benefits of meditation - 
I want to be happy, I want to be always smiling. I want to generate my inner powers. I want to get control of my inner powers. I want to improve my inner powers. मैं अपने आप पर control रखना चाहता हूँ l लोग मुझे कुछ कहते हैं तो ऐसा न हो कि मुझे मेरी reaction का पता ही न हो l बहुत बार हम लोगों से बात करते हैं, जिन लोगों का व्यवहार थोड़ा difficult होता है, tough होता है l   जिनको गुस्सा बहुत ज़्यादा आ जाता है, वो लोग ये बात बोलते हैं कि – “मुझे नहीं पता चलता कि मुझे गुस्सा कब आ गया l मेरी यह reaction कैसे हो गई, मुझे यह पता ही नहीं चला l” Most of the times, these things are happening in our life without our control. हमारा अपने आप पर कोई नियंत्रण नहीं है, कोई control नहीं है l So the gateway to that control is somewhere here. यहाँ से अपने आप पर नियंत्रण ले कर आने की जगह में प्रवेश किया जा रहा है l That is the place. तो केवल यहाँ पर ध्यान लगाकर हमें केवल thoughtless होना है l यानी एक विचार जैसे भी उठा, और दूसरा अभी नहीं उठा है l एक विचार उठाकर हमारे front पर आता है, उस समय में हमें केवल उसे देखना है l Just be an observer. मैं उसे केवल देख रहा हूँ, Thats it. I am not doing anything. केवल अपने आपको देखना and just be there as a witness. Thats it. इसी में मन बहुत शांत होना शुरू हो जाएगा l थोड़े समय में अपने अंदर change दिखेंगे l थोड़े समय में अंदर change क्या होगा? विचारों का जो flow था, वो कम होना शुरू हो जाएगा l विचार उठेंगे, हम अंदर बैठे हैं, ध्यान में आँखें बंद की हुई हैं l विचार उठते हैं, सामने आते हैं l But its ok. You are there. I am thinking about something because mind brings some of the pictures. पहले वो किसी friend का picture ले आएगा l फिर जो हमने उसके साथ बातचीत की थी, उसके बारे में सोचने लगेगा l उसके साथ हमारे relation कैसे हैं, कोई incidence उसके साथ कैसा हुआ था, उसके साथ कैसा हुआ था.... वो सोचना शुरू कर देगा l And this way the chain keeps on going. एक के साथ एक हमारे विचार चलते चले जाते हैं l unfortunately हमारा इस पर कोई control नहीं रहता l इसी तरह से हमारा मन किसी negative thinking में जाता है, जिसके बहुत chances होते हैं l

 हमारा मन अधिकतर negative ज़्यादा सोचता है l हमारे मन के साथ बहुत बड़ी समस्या है कि ये negativity बहुत सोचता है l दस चीज़ें हमारी life में अच्छी होंगी, या हो सकता है 999 चीजें हमारे जीवन में अच्छी होंगी, केवल एक कहीं कमी होगी तो हमारे मन का स्वभाव ऐसा है कि उस एक को पकड़ लेता है और उसी एक के बारे में सोचता रहता है, और सारी negativity वहाँ लगा देता है l जैसे मान लीजिए माँ का एक बेटा office या स्कूल गया था, और अभी तक वापिस नहीं आया है l तो हो सकता है कहीं लेट भी हो गया हो l बजाए इसके कि वो उसके positive way में सोचे, उसका मन negative ज़्यादा सोचना शुरू कर देता है l कहीं कुछ गलत न हो गया हो l That is the negativity. हमें अपने आप पर control रखना है, अपनी आत्मा की, अपनी ताकत को इतना बढ़ाना है कि हम उस negativity को हटा सकें l अधिकतर लोग जो tension में आ जाते हैं, जो depression में आ जाते हैं, जब उनकी negative thinking बहुत excessive हो जाती है, तब वो depression में आ जाते हैं l तो इससे हम कैसे छुटकारा पाएँ? उसके लिए यही technique है l एक तो जैसे पहली technique बताई, साँस को लंबा लेना और दूसरी जो technique है वो यही है कि be observer. Don’t associate yourself with thoughts.  विचार और मैं दो अलग अलग हस्तियाँ हैं l विचार कुछ हैं और मैं कुछ और हूँ and that’s it. That will bring about alots of change. Many times it will happen that you will start running behind your mind. बहुत बार हम विचारों के पीछे भागना शुरू कर देते हैं, हम अपने आपको भूल जाते हैं l धीरे-धीरे इस technique को करते करते एक level आता है, यानी अगर हम रोज के 15 min. इस चीज़ को देना शुरू करें, पर दीजिए morning hours में l जैसे आप उठते हैं, वह best time होता है अपने आपको कुछ positive देने का l थोड़ा walk वगैरह पर जाने के बाद, थोड़ा fresh होने के बाद, your can try this thing. थोड़ा अपने आपको time दीजिए l 15-20 min. अपने आप के लिए just observe yourself. और जैसे ही हम observe करना शुरू करते हैं अपने विचारों को, मन हमारा शांत होने लगता है l और जब मन शांत हो जाए, उसका positive उपयोग करना है, उसका सदुपयोग करना है l वो सदुपयोग क्या है? वो सदुपयोग है - अपने आपको positive suggestions / Affirmations देना l जैसे एक positive suggestion है कि “I am always smiling. I have to smile always. I am very energetic.” हम अपने आपको ये विचार बार बार देते हैं कि “मेरे अंदर बहुत ताक़त है, सम्पूर्ण ऊर्जा मेरे अंदर भरी हुई है. I am the most successful person. मैं एकदम सफल इंसान हूँ l मैं जो भी करूँगा, पूरे दिलो जान से करूँगा l अपनी पूरी ताक़त उसमें लगा दूँगा और मुझे सफलता मिलेगी ही मिलेगी l संसार की कोई भी ताक़त मेरे सामने ठहर नहीं सकती l” यानी उस समय भी हम अपनी internal power को जगाना शुरू करते हैं l After standing here and sometimes getting the thoughts. जब हमारे विचार थोड़े शांत हो जाते हैं....., When the thoughts are actually minimized, at that time you can start giving yourself positive suggestions. तो पहले थोड़ा विचारों को शांत करके फिर अपने आपको positive suggestions दे के, कुछ भी करके देखिये लेकिन जैसाकि पहले आपको बताया कि जो हम अपने आपको suggestions दे रहे हैं, उसमें यह एक important step यह है कि कभी भी negative बात नहीं करनी l जैसे यह नहीं कहना कि –“मुझे smoking छोडनी है, I will not smoke.” Negative words का इस्तेमाल नहीं करना l  क्योंकि हमारे मन को नकारात्मक शब्द समझ में नहीं आते l हमारे मन को हमेशा positive शब्द ही समझ में आते हैं l यानी मन को picture दिखाओ, वैसा जैसा हम बनना चाहते हैं l वैसा हम बन कर दिखाएँ, वैसा हम अपने आपके अंदर picture create करें l जैसे आप एक office worker हैं, आप job करते हैं l आप अपने आपको positive suggestions देना चाहते हैं l सारा दिन अपने अंदर energy बरकरार रखनी है l “I am very much excited about my job. मैं अपने आपके बारे में और अपनी job के बारे में बहुत excited हूँ और मुझे कर के दिखाना है. I am always doing everything with my complete passion. अपने दिलो जान के साथ मैं कोई काम करता हूँ l यानी जो भी काम करता हूँ, उसमें पूरी ताक़त लगा देता हूँ l” ध्यान में हमने क्या किया? अपने विचारों के साथ हमने थोड़ी distance बना ली l यानी विचारों पर हमारा control होना शुरू हो गया l उसके बाद आप जो भी काम करेंगे, उसके अंदर आपको यह control नज़र आएगा l विचार आपको हमेशा भूतकाल या भविष्य काल में ले जाते हैं l यानी पीछे की बात सोचेंगे या आगे आने वाले समय की बात सोचेंगे l Meditation या ध्यान का मतलब है – इसी समय में स्थित हो जाना l और किसी और जगह के बारे में न सोचते हुए इसी जगह पर रुक जाना l यानी this is the right time, right opportunity and this is the right place. न पहले, न बाद में, यहीं पर l अभी और यहीं....... l यह meditation की basic technique है – now and here. जैसे ही आप now and here में ठहरते हैं, आपकी पूरी पूरी ताक़त इसी moment में आकर कैद हो जाती है l यानी अब आप जो भी करेंगे, उसके अंदर आपकी पूरी पूरी ताक़त के साथ हम करेंगे, पूरे प्राण हम लगा देंगे l इसका result यह होगा कि चीज़ों पर हमारा control होना शुरू हो जाएगा l बहुत हद तक हम अपने depression से, बहुत हद तक हम अपनी negativity पर काबू पा लेंगे l आप देखेंगे कि इससे हम अपनी बहुत सी आदतें बदल सकते हैं l हमारे जीवन में धैर्य आने लगेगा, patience आने लगेगा l अभी संसार में patience जैसे खत्म होता चला जा रहा है l गुस्सा लोगों की नाक पर रखा हुआ है l बस, आप उनको कुछ pinch कर दो, वो आपको बता देंगे कि वो क्या हैं l  Unfortunately ये सारी चीजें इतनी excessive होती चली जा रही हैं, और TV, movies वगैरह में भी यही सब दिखाया जाता है कि गुस्सा करके हम संसार को बदल देते हैं l हीरो को गुस्सा करते हुए दिखाया जाता है l और यही चीज़ हमारी life का part बन जाती है l हम इतनी गहराई से TV और movies को देखते हैं, हमारा मन यह मानना शुरू कर देता है कि ऐसा मुझे भी करना चाहिए l अब जब इस प्रकार की चीज़ें हम बार बार देखेंगे तो ज़ाहिर सी बात है कि हमारा मन भी वैसा ही हो जाएगा l TV, movies वगैरह को इतना ज़्यादा preference न दें l देखिये! अपने आप की life सबसे बड़ी movie है l अपने आपकी life में जो है, वो सबसे बड़ा ग्रन्थ है l वो सबसे बड़ा ज्ञान अपनी life से मिल रहा है l अपनी life जो है, वो हमारे सबसे उत्तम सदग्रंथ हैं l अगर हम कहें तो यही हमारी गीता, हमारा कुरान, हमारी अपनी life है l जब अपनी life से हम नहीं सीख सकते, तो किसी और की life से हम क्या सीखेंगे? तो सबसे पहले अपने विचारों का control ले कर आना, अपने mind को यहाँ पर ठहराने की technique सीखना, mind से थोड़ा distance बनाना और फिर अपने जीवन में change लेकर आना, that is the crux.   मेरा विचार भी है, मेरी प्रार्थना भी है, मेरी good wishes भी हैं कि आप इसी प्रकार से अपनी life के अंदर यह change ले कर आ पाएंगे l जब आप इस आज्ञा चक्र पर ध्यान लगा कर कोई भी चीज़ को दोहराते हैं और खासतौर पर उस समय में जब आपका मन शांत हुआ हो, तो वो change आपकी life में बहुत जल्दी effect होना शुरू हो जाता है l आप दो या तीन दिन यह कह कर देखिये कि – “I am very energetic. मेरे अंदर बहुत power है, मैं बहुत खुश मिसाज़ हूँ l मेरे चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट रहती है, मैं खुद भी खुश होता हूँ और मेरे साथ-साथ मेरे दोस्त, मेरे मित्र, मेरी life में जो भी मेरे सामने आते हैं, उन सबके जीवन में मैं खुशियाँ दे सकता हूँ l”

ऐसा कुछ दिन कर के देखिये l दो या तीन sentence को बार बार repeat कीजिये और लगभग 21 दिनों के अंदर अपने जीवन में अंदर परिवर्तन देखिये l क्या यह परिवर्तन होता है या नहीं होता? मेरा इस पर पूरा विश्वास है क्योंकि मैंने खुद करके देखा है, इसलिए आपको इस परिवर्तन के लिए कह रहा हूँ l ये बिलकुल personal basis पर बिलकुल practical चीज़ें हैं l अपनी life में कर के देखिये तो आपको पता लगेगा. I hope, It will bring a positive change in your life.

  Thank you so much.

Tuesday, July 8, 2014

Mind Power & Parenting CD Hindi FREE (Fixed Links)

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ये सीडी बिलकुल फ्री है. आप इसे किसी भी प्रकार से बाँट सकते हैं.

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Wednesday, July 2, 2014

गर्भ संस्कार

गर्भ संस्कार क्या है?

माता-पिता का उत्कृष्ट बीज व दृढ़ संकल्प ही उत्कृष्ट संतति का कारण होता है। माता-पिता के छोटे से बीज के संयोग से गर्भधारण व गर्भ का अणुरूप बीज मानव शरीर में रूपांतरित होता है। इस वक्त सिर्फ शारीरिक ही नहीं, आत्मा व मनका परिणाम बीज रूप पर होता है। चैतन्य शक्ति का छोटा-सा आविष्कार ही गर्भ है।



माता-पिता का एक-एक क्षण व बच्चे का एक-एक कण एक-दूसरे से जुड़ा है। माता-पिता का खाना-पीना, विचारधारा, मानसिक परिस्थिति इन सभी का बहुत गहरा परिणाम गर्भस्थ शिशु पर होता है। गर्भस्थ शिशु को संस्कारित व शिक्षित करने का प्रमाण हमें धर्म ग्रंथों में मिलता ही है। कई वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं व उन्होंने इसे सिद्ध किया है। हमारे धर्म ग्रंथों में प्रचलित सभी मंत्रों में यही कंपन रहता है- ऊँ, श्रीं,क्लीं, ह्रीम इत्यादि। गर्भस्थ शिशु को इन बीज मंत्रों को सिखाने की प्रथा हमारे धर्मग्रंथों में है।

चौथे महीने में गर्भस्थ शिशु के कर्णेंद्रिय का विकास हो जाता है और अगले महीनों में उसकी बुद्धि व मस्तिष्क का विकास होने लगता है। अतः,माता-पिता की हर गतिविधि,बौद्धिक विचारधारा का श्रवण कर गर्भस्थ शिशु अपने आपको प्रशिक्षित करता है। चैतन्य शक्ति का छोटा सा आविष्कार यानी,गर्भस्थ शिशु अपनी माता को गर्भस्थ चैतन्य शक्ति की 9 महीने पूजा करना है। एक दिव्य आनंदमय वातावरण का अपने आसपास विचरण करना है। हृदय प्रेम से लबालब भरा रखना है जिससे गर्भस्थ शिशु भी प्रेम से अभिसिप्त हो जाए और उसके हृदय में प्रेम का सागर उमड़ पड़े। आम का पौधा लगाने पर आम का पौधा ही बनेगा। उत्कृष्ट देखभाल,खाद-पानी देने पर उत्कृष्ट किस्म का फल उत्पन्न करना हमारे वश में है। तेजस्वी संतान की कामना करने वाले दंपति को गर्भ संस्कार व धर्मग्रंथों की विधियों का पालन ही उनके मन के संकल्प को पूर्ण कर सकता है।
गर्भ संस्कार की विधि गर्भधारण के पूर्व ही, गर्भ संस्कार की शुरूआत हो जाती है। गर्भिणी की दैनंदिन दिनचर्या, मासानुसार आहार, प्राणायाम, ध्यान, गर्भस्थ शिशु की देखभाल आदि का वर्णन गर्भ संस्कार में किया गया है। गर्भिणी माता को प्रथम तीन महीने में बच्चे का शरीर सुडौल व निरोगी हो,इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए। तीसरे से छठे महीने में बच्चे की उत्कृष्ट मानसिकता के लिए प्रयत्न करना चाहिए। छठे से नौंवे महीने में उत्कृष्ट बुद्धिमत्ता के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

ऐसे मिलेगी स्वस्थ संतान

-आहार विशेषज्ञ की सलाह से अपनी खानपान की आदतों में सुधार लाएं। विभिन्न तरह के स्वास्थ्यप्रद आहार लें। -गर्भवती होने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लें। हमेशा खुश रहने की कोशिश करें। -विचारों में शुद्धता रखें। -टीवी अथवा फिल्मों में ऐसे दृश्य देखने से परहेज करें, जो हिंसा और जुगुत्सा को बढ़ावा देते हों। -मद्यपान अथवा धूम्रपान करने वालों की संगत में न बैठें। किटी पार्टी आदि में ताश का जुआ अथवा तंबोला आदि से बचने की कोशिश करें। -धार्मिक जीवन चरित्रों को पढ़ें। -अपने मन में किसी भी प्रकार का टेंशन या मानसिक दुर्बलता को जगह न बनाने दें। -तेजस्वी संतान प्राप्ति के लिए जरूरी है कि आप मनसा वाचा कर्मणा शुद्ध व्यवहार पर ध्यान दें। भावी संतान के रखरखाव संबंधी जानकारियाँ एकत्रित करें। -अब तक न खाए हों, ऐसे फल-सब्जी खाएँ। -मांसाहार त्याग दें। बासी आहार न लें। आहार विशेषज्ञ की सलाह से अपनी खानपान की आदतों में सुधार लाएँ। विभिन्न तरह के स्वास्थयप्रद आहार लेने लगें।

ये ऑडियो लेक्चर आपको गर्भ संस्कार के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे.

Garbh.Sanskar.2 – GARBH SANSKAR – Lecture

GarbhSanskar.Class -1 (Introduction)

GarbhSanskar.Class -2(Mata Pita Ki Prarthna)

GarbhSanskar.Class -3(TV Programs Effect)

GarbhSanskar.Class -4(Bacche Se Connection)

GarbhSanskar.Class -5(Bacche Ko Sanskar)

GarbhSanskar.Class -6(Meditation By Mother)

GarbhSanskar.Class -7(Maun Vrat)

GarbhSanskar.Class -8(Conclusion) 

=CHANTS FOR GARBH SANSKAR =

Garbh.Sanskar.3 – Prarthna – Lord Hanuman, Devi, Lord Vishnu

Garbh.Sanskar.4 – Aayushya Mantra – Good Health Mantra

Garbh.Sanskar.5 – Garbhsravini Sookta – Blessings

Garbh.Sanskar.6 – Baal Mukunda Shatakam – Lord Krishna Blessings

Garbh.Sanskar.7 – Pradnya Vivardhan Stotra – For Brain Development

Garbh.Sanskar.8 – Vanshvrudhi Vansh Kavach – Protection of Mother & Child

Garbh.Sanskar.9 – Garbh Raksha Prarthna to Lord Vishnu, Prajapati

Garbh.Sanskar.10 – Garbh Samvaad – Ek Tere Aa Jane Se

Garbh.Sanskar.11 – Om Namo Bhagvate Vasudevaya

Garbh.Sanskar.12 – Yog Nidra – Shlokas for Peaceful Sleep

Garbh.Sanskar.13 – Garbh Gita Audio Book 

Garbh.Sanskar.14 – Pregnancy Music_ Relax & Calm Music 

Garbh.Sanskar.15 – Relaxing Harp Music & Soothing Sounds

Garbh.Sanskar.16 – Gayatri Mantra ( 108 peaceful chants )

 

 

GarbhSanskarNew.2 – Ganesh Stotra

GarbhSanskarNew.3 – Santan Gopal Mantra

नीचे की यह प्रार्थना रात को सोने से पहले सुननी चाहिये.

GarbhSanskarNew.12 – Abhimanyu Garbh Sanskar (Hindi) 

नीचे के 3 ऑडियो में गर्भवती माँ की बच्चे से बातचीत है, यह बहुत ही Powerful तरीका है, अपने बच्चे के गुण निर्धारिक करने का. आपका बच्चा सुन्दर हो, स्वस्थ हो, ज्ञानवान हो, धनवान हो, नीति ओर मर्यादा का पालन करने वाला हो, Creative Mindset वाला हो.
His/her Analytic skills should be great! A Positive attitude towards everything in Life. आप इन सब बातों के लिय अपने बच्चे को Program कर सकते हो. इस process को Fetal Programming कहा जाता है.  (http://www.psychologytoday.com/blog/more-genes/200910/more-genes-i-so-what-is-fetal-programming)

GarbhSanwad.Hindi.1 – (Mom Talk to The Baby)

GarbhSanwad.Hindi.2 – (Mom Talk to The Baby) 

GarbhSanwad.Hindi.3 – (Mom Talk to The Baby) 

नीचे की ये दो प्रार्थना गर्भवती माँ को लगातार 21 दिन तक सुननी चाहिये. इसको सुनते हुए अपने मन के भाव भी शब्दों के अनुसार बनाइये, तभी इनका असर होगा.

Garbhvati Prarthna.Hindi.1 – (Mom Prayer to Lord) 

Garbhvati Prarthna.Hindi.2 – (Mom Prayer to Lord) 

धन्यवाद.

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